महकती बंदिशों का गुलदस्ता' में गूंजी पं. लक्ष्मण भट्ट तैलंग की संगीत विरासत

महकती बंदिशों का गुलदस्ता' में गूंजी पं. लक्ष्मण भट्ट तैलंग की संगीत विरासत

Ananya soch

अनन्य सोच। पद्मश्री पं. लक्ष्मण भट्ट तैलंग की स्मृति में शनिवार को चेम्बर भवन में आयोजित हुई सांगीतिक संध्या “महकती बंदिशों का गुलदस्ता” ने शास्त्रीय संगीत प्रेमियों को एक अविस्मरणीय अनुभव प्रदान किया. सुर, लय, ताल और भावों से सराबोर यह समारोह राजस्थान सरकार के कला एवं संस्कृति विभाग तथा राजस्थान चेम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज के सहयोग से पंडित भट्ट के शिष्य और ध्रुवपद गायक डॉ. श्याम सुन्दर शर्मा के संयोजन में आयोजित किया गया. 

विजयेन्द्र गौतम ने प्रस्तुत किया पंडित लक्ष्मण भट्ट तैलंग की बंदिशों का गुलदस्ता

इस अवसर पर प्रो. डॉ. विजयेंद्र गौतम ने अपने गुरु पंडित लक्ष्मण भट्ट तैलंग द्वारा उनके जीवन काल में रची गई बंदिशों का गुलदस्ता पेश किया जिसे सुनकर श्रोता भावुक हो गए. उन्होंने राग मधुवंती में ताल विलंबित झूमरा में सांचो तेरो नाम, मध्य लय त्रिताल में सुमिरन कर ले मेरे मन, राग भीमपलासी में जाओ जाओ जाओ कान्हा तुम, त्रिताल मध्य द्रुत लय में तराना, राग मेघ एक ताल मध्य लय में गरज गरज बरसत घन, राग देश में उमड़ घुमड़ घिर बदरा छाये, और द्रुत त्रिताल में तराना की प्रभावी प्रस्तुति से अपने गुरु को स्वरांजलि दी. उनके साथ हारमोनियम पर गिरिराज बालोदिया और तबले पर दशरथ राव ने संगत की. 

अनूप मोघे और वैशाली मोघे ने किया ख्याल गायन

इसके बाद ग्वालियर के ख्यात गायक पं. अनूप मोघे और वैशाली मोघे ने कार्यक्रम की शुरुआत ख्याल गायिकी से की. उन्होंने राग भूपाली में त्रिताल की बंदिश, राग काफी में ‘होरी खेलत नंद लाल’ तथा राग केदार में झपताल में निबद्ध तराना प्रस्तुत कर शास्त्रीय संगीत के ललित्य और विविधता का अनुपम प्रदर्शन किया. इसके बाद राग दुर्गा में चौताल की बंदिश ‘नाद ब्रह्मनाद’, अडाना में ‘गं गणपति गणेश’, चंद्रकौंस और राग बसंत के माध्यम से उन्होंने गायन की गंभीरता, स्वर माधुर्य और तकनीकी सूक्ष्मताओं को उकेरा. उनकी संगत में हारमोनियम पर गिरिराज बालोदिया और तबले पर प्रणव मोघे ने सराहनीय साथ दिया. 

मधु भट्ट के गंभीर विमर्श से शुरू हुआ आयोजन

कार्यक्रम का आरंभ प्रो. डॉ. मधु भट्ट तैलंग के वक्तव्य से हुआ। उन्होंने अपने पिता और गुरु पं. लक्ष्मण भट्ट तैलंग की बंदिशों में सौंदर्य-बोध, प्रयोगशीलता और रचनात्मक विशिष्टताओं पर गहन विचार प्रस्तुत किए, जिससे श्रोताओं को तैलंग की संगीत-धारा की गहराई को समझने का अवसर मिला. उन्होंने बताया कि पंडित लक्ष्मण भट्ट जी के तीन ग्रंथ—रसमंजरी शतक, संगीत रसमंजरी पंचाशिका और संगीत विमल मंजरी—तथा उनके द्वारा 2025 में लिखे गए ग्रंथ में लगभग 500 बंदिशें प्रकाशित हैं। ये सभी बंदिशें कालजयी मानी जाती हैं क्योंकि इनकी लिपिबद्ध शैली इतनी सहज है कि हर उम्र का व्यक्ति—चाहे बालक हो या वृद्ध—उन्हें तुरंत ग्रहण कर गुनगुना सकता है. 

हर संगीत साधक, चाहे वह भारत का हो या विदेश का, इन बंदिशों को इसलिए गाता है क्योंकि उनमें शब्द, छंद और संगीत संयोजन का ऐसा समन्वय होता है कि रचना गाते ही ज़ुबान पर चढ़ जाती है. इन बंदिशों को राग का आईना और व्याकरण माना जाता है, क्योंकि रागों की भ्रांतियों के निराकरण हेतु संदर्भ और प्रामाणिकता इन रचनाओं में उपलब्ध होती है. किसी भी बंदिश की उठान से ही राग स्थापित हो जाता है। यही कारण है कि देश के प्रमुख विश्वविद्यालयों और संगीत कॉलेजों में ये बंदिशें शिक्षकों की पहली पसंद बन चुकी हैं. इसका प्रमाण अनूप मोघे जैसे प्रतिष्ठित गायक हैं, जो वर्षों से पंडित जी की पुस्तक से बंदिशें सिखाते आ रहे हैं. 

सम्मान और प्रेरणा का क्षण

इस अवसर पर पं. अनूप मोघे को वाग्गेयकार-रत्न सम्मान से अलंकृत किया गया। यह सम्मान उनके रचनात्मक योगदान और गुरु परंपरा के प्रति समर्पण का प्रतीक रहा. 

अतिथियों की गरिमामयी उपस्थिति

कार्यक्रम में मुख्य अतिथि डॉ. के एल जैन, अध्यक्ष डॉ. अखिल शुक्ला, विशिष्ट अतिथि मनीष पारीक, वैदिक चित्रकार रामू राम देव, शास्त्रीय गायिका डॉ. निशा भट्ट तैलंग, ध्रुवपद गायिका प्रो. डॉ. मधु भट्ट तैलंग तथा बेला वादक पं. रविशंकर भट्ट तैलंग मंच पर उपस्थित रहे. डॉ. श्याम सुन्दर शर्मा ने स्वागत उद्बोधन में पं. तैलंग की संगीत साधना पर प्रकाश डाला तथा राजेश आचार्य ने कुशल मंच संचालन किया.