तमाशा शैली की विरासत पर संकट, कलाकारों को मिलते हैं मात्र 400 रुपए

Ananya soch
अनन्य सोच। परम्परा नाट्य समिति द्वारा आयोजित 14वें स्व. गोपीजी भट्ट स्मृति संगीत नाट्य समारोह के समापन अवसर पर मंच पर 200 साल पुरानी तमाशा शैली की मनमोहक प्रस्तुति दी गई. वरिष्ठ तमाशा साधक दिलीप भट्ट ने कहा कि हम हर वर्ष आमेर के अंबिकेश्वर मंदिर में इस परंपरा को जीवित रखते हैं, लेकिन कलाकारों को मात्र 400 रुपए मिलते हैं. इस स्थिति में परंपरागत कलाओं का भविष्य सुरक्षित नहीं है। उन्होंने खेद जताया कि सरकार और संस्कृति मंत्रालय इन शैलियों के संरक्षण के प्रति संवेदनशील नहीं हैं.
तीन दिवसीय समारोह में पहले दिन नाटक, दूसरे दिन संगीत कार्यक्रम और अंतिम दिन तमाशा की शानदार प्रस्तुति हुई. दिलीप भट्ट ने स्व. बंशीधर भट्ट रचित गोपीचंद भर्तृहरि प्रसंग का मंचन किया, जिसकी शुरुआत गणेश वंदना और लहरिया से हुई. इसके बाद मालकोस, पहाड़ी भूपाली, सिंध काफी, भैरव, भैरवी, केदार और बिहाग जैसे रागों की श्रृंखला ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया.
भट्ट ने कहा कि यह कला पहले गुमनामी से निकली, फिर उसी राह पर लौट रही है. गोपीजी भट्ट ने इसे संभाला था और अब छठी पीढ़ी के रूप में वे स्वयं इसे आगे बढ़ा रहे हैं. प्रस्तुति में सातवीं पीढ़ी के सचिन भट्ट और हर्ष भट्ट ने भी संगत दी. तबले पर शैलेन्द्र शर्मा, हारमोनियम पर शैर खान और सारंगी पर मनोहर टांक ने साथ दिया.
यह आयोजन न केवल राजस्थान की सांस्कृतिक धरोहर को जीवंत करता है, बल्कि सरकार से इस विरासत को संरक्षित करने की गहरी मांग भी करता है.