“पगला गयी धानका” — सामाजिक सच को बेधता मार्मिक मंचन
जवाहर कला केंद्र में प्रस्तुत नाटक ने सम्मान, अपराधबोध और मनोवैज्ञानिक त्रासदी की उठाई बड़ी बहस
Ananya soch
अनन्य सोच। जवाहर कला केंद्र के रंगायन सभागार में बुधवार को वीणा पाणी कला मंदिर समिति द्वारा प्रस्तुत सामाजिक–नाट्य प्रस्तुति “पगला गयी धानका” का मंचन हुआ. उत्तर क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, पटियाला के सहयोग से 30 दिवसीय कार्यशाला के अंतर्गत तैयार इस नाटक ने दर्शकों को भीतर तक झकझोर दिया. नाटक एक सरपंच और उसकी पत्नी की मनोवैज्ञानिक व्यथा, सामाजिक दबाव और छिपे अपराधबोध पर गहरी चोट करता है.
कथा एक ऐसे सरपंच पर केंद्रित है, जो गाँव से कुप्रथाओं को मिटाने, बाल विवाह रोकने और जन–सेवा में जुटा रहता है। लेकिन उसकी पत्नी अचानक मानसिक संतुलन खोने लगती है, जिससे पूरा गाँव चिंता में आ जाता है. समाधान की खोज में गाँव वाले एक ओझा को बुलाते हैं, जो सरपंच से सवाल करता है,“तूने कौन-सा गुनाह किया है?” इसी प्रश्न से नाटक फ्लैशबैक में प्रवेश करता है और एक दबी हुई त्रासदी सामने आती है.
आखिरकार सरपंच स्वीकारता है कि उसने एक प्रेमी जोड़े की ऑनर किलिंग होते देखी थी, लेकिन समाज और जातिगत दबाव के कारण वह चुप रहा. यही अपराधबोध उसकी पत्नी के पागलपन के रूप में उभरता है.
नाटक में सरपंच का दमदार भूमिका विशाल भट्ट ने निभाई, जबकि सरपंचनी (धानका) के तीव्र भावपूर्ण अभिनय ने अन्नपूर्णा शर्मा ने दर्शकों को स्तब्ध किया. ओझा के प्रभावशाली किरदार में डॉ. सौरभ भट्ट ने मंच पर गहरी छाप छोड़ी. अन्य कलाकारों में झिलमिल भट्ट, रेखा शर्मा, शाहरुख़ खान, मौली शर्मा, अखिल चौधरी सहित कई कलाकार शामिल रहे.
संगीत (शैलेन्द्र–अनुज), प्रकाश (गगन मिश्रा), सेट डिज़ाइन (आसिफ शेर अली–दीपक गुप्ता) और मेकअप (रवि बांका) ने प्रस्तुति को और प्रभावी बनाया.
दर्शकों ने संवादों की तीव्रता, प्रतीकात्मक प्रस्तुति और सामाजिक संदेश की खुलकर सराहना की. आयोजकों ने बताया कि यह नाटक सम्मान के नाम पर होने वाली हिंसा, स्त्री की संवेदना और समाज के भीतर दबी सच्चाइयों पर गंभीर प्रश्न उठाता है.