लेवेंडर परिधान में सजी स्वर वीरांगनाएं, गूंजी जीत की सरगम

Ananya soch:
अनन्य सोच। सावन की संध्या, सुरों की मिठास और स्त्री-शक्ति का आत्मविश्वास इन तीनों ने शनिवार शाम जब एक मंच पर मिलकर जवाहर कला केंद्र के रंगायन सभागार को सराबोर कर दिया, तो ‘जीत जाएंगे हम’ केवल एक कार्यक्रम नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक उत्सव बन गया. मौका था शहर की महिलाओं के सर्वाधिक प्रतिष्ठित "सरगम' ग्रुप की ओर से आयोजित कार्यक्रम का. गायिका मुक्ता चड्ढा के निर्देशन में प्रस्तुत यह संध्या अमर संगीतकार लक्ष्मीकांत–प्यारेलाल को समर्पित थी, जिसमें जयपुर की 16 संगीत प्रेमी महिलाओं ने अपने-अपने सुरों से उस युगल को श्रद्धांजलि दी.
लेवेंडर रंग के सौम्य परिधानों में सजीं ये गायिकाएं जब मंच पर उतरीं, तो दृश्य ऐसा था जैसे सावन की रूह संगीत में ढल गई हो. कार्यक्रम की शुरुआत मुक्ता चड्ढा, राजश्री, ममता, अनुराधा और संध्या ने भक्ति रस से ओतप्रोत गीत "ना मांगू सोना चांदी..." को संवेत स्वरों में गाकर की, इसके बाद उन्होंने उमंग भरा "उड़ के पवन के रंग चलूंगी..." गीत प्रस्तुत कर वातावरण में शोखी भर दी . अनुराधा माथुर ने प्रेम की गहराई को "मैं तेरे इश्क में मर न जाऊं कहीं..." में गाकर महसूस कराया, ममता झा ने "आंखियों को रहने दो..." में संयमित भावना व्यक्त की, राजश्री सेमंत की "पायल की झंकार..." प्रस्तुति में लोक संगीत की गंध थी, पूनम जैन ने "तेरा साथ है तो..." में निर्भरता और भरोसे की मधुरता भरी. मीरा सक्सेना ने "हाय हाय ये मजबूरी..." में चंचलता का संचार किया, संध्या असवाल ने "सत्यं शिवं सुंदरम्..." के माध्यम से संगीत को आध्यात्मिक ऊंचाई दी, भावना कश्यप के गाये गीत "आ जाने जान..." में एक मोहक खिंचाव था, रितु श्रीवास्तव की "ये गलियां ये चौबारा..." ने स्मृतियों का दीप जलाया. कोपल माथुर ने "सुनो सजना पपीहे ने..." में मान-मनुहार की मिठास रच दी, शर्मीला ने "जाने क्यों लोग मोहब्बत किया करते हैं..." गाकर प्रेम की सादगी को स्वर दिया,रेणु माथुर की "एक प्यार का नग्मा है..." प्रस्तुति शांति और साहस की गूंज बन गई, प्रियंका शर्मा ने "तेरे संग प्यार में..." में आत्मविश्वास के स्वर घोल दिए. संतोष भाटी की "यशोमती मैया से बोले नंदलाला..." में वात्सल्य छलक उठा, निशा शर्मा की "मेरे नसीब में तू है कि नहीं..." सुनकर श्रोताओं की आंखें नम हो उठीं. गायिकाओं की सामूहिक प्रस्तुतियों ने शाम को और भव्यता दी. पूनम, निशा और शर्मीला ने जब "एक दो तीन..." गाया, तो पूरा सभागार झूम उठा, मुक्ता, अनुराधा और भावना की "कोई जब राह न पाए..." में दोस्ती की ऊष्मा थी ,ममता, रितु और मीरा की "बिंदिया चमकेगी..." में श्रृंगारिक चपलता थी, संध्या और प्रियंका की "दफली वाले..." प्रस्तुति में उत्सव का उल्लास था, राजश्री और कोपल ने "नी मैं यार मनाना नी..." में ठेठ पंजाबी जज़्बा जगा दिया. अंत में, जब सभी गायिकाएं एक साथ गाईं — "जीत जाएंगे हम तू अगर संग है...", तो यह केवल गीत नहीं, एक भावनात्मक घोषणापत्र बन गया, जिसमें जज़्बा, विश्वास और साथ की ताक़त झलकती थी. कार्यक्रम की संयोजक ऊषा अग्रवाल और अनुराधा माथुर रहीं. संचालन अनुराधा माथुर ने किया. मुख्य अतिथि प्रदेश की पहली ध्रुपद गायिका डॉ. मधु भट्ट तैलंग, विशिष्ट अतिथि राज्य महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष सुमन शर्मा और आकाशवाणी की कार्यक्रम प्रमुख रेशमा खान ने इस सांगीतिक संध्या की मुक्त कंठ से सराहना की. कुल मिलाकर सरगम ग्रुप की यह प्रस्तुति नारीत्व, संगीत और सामूहिक ऊर्जा की एक बेहतरीन मिसाल बन गई.